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  मैंने रूप अनेक अपनाए

मैंने रूप अनेक अपनाए

                                    मैंने रूप अनेक अपनाए 

माता बन कर आती हूँ  

तब कहते हो भगवान 

तुम्ही हो दुर्गा तुम्ही भगवती 

तुम्ही हो सब कुच तुम्ही महान। ........ 

 जब प्रयसी  रूप में आती हूँ 

कामुकता से घायला होते हो 

वरन करने को ललचाते हो 

सेहरा बाँध बाराती लाते  

फिर जब बेटी बनती हूँ 

तब क्यों कहते अभिशाप।   ........     

बिगड़ी किस्मत पर्णाघाती 

तब क्यों रखते मेरा नाम। ....... 

अरे नपुंसक शास्त्र निकालो 

चिकीत्सा ग्रंथ का पाठ पढ़ो 

जनन क्रिया का थोड़ा सा 

पढ़ जाओ अध्याय। ........ 

भ्रूण प्रथम चार हफ्ते 

नारी रूप में रहता है 

बेटी और बीटा का निर्णय 

पिता की ओर से होता है। ........ 

मतलब खुद के हाथो खुद मरते हो 

सिर उठाए मूरखता को चतुराई कहते हो 

माँ पत्नी प्रयसी  दुर्गा के अनेक रूप का हनन करते हो। ......... 

सावधान , समय ने समय दिया है 

नहीं तो, अनेक रूप वाली बेटी 

बाढ़ भूकम्प सुनामी बनकर 

संसार को रोंदने का प्रण  किया है। 




1 Response to " मैंने रूप अनेक अपनाए "

Unknown ने कहा…

👌👌bahut bahut achha hai

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