पड़ोसी पर छोड़कर नफरती व्यंग्यबाण
अपनी बुराईयो॔ को छुपाओगे कब तक
कभी घंटी कभी थाली कोरोना में बज वाली
भाग कोरोना को घुड़की दिलवाओगे कब तक
देसी प्रतिष्ठान सारे चंद हाथों में सौंप दिए
जनता को उनसे बोलो लुटवाओगे कब तक
गैस का सिलेंडर ₹1100 से पार हुआ
मेरे हाथ कुछ नहीं बतलाओगे कब तक
देश की ये बेटियां सब जीतकर भी हार गई
उनका खोया सम्मान दिलाओगे कब तक
बलात्कारी हत्याओं की फौज लगातार बढ़ती
उनसे हमे अमनो चैन दिलवाओगे कब तक
80 करोड़ जनता को 5 किलो गेहूं फेंक
देश का विकास इसे बतलाओगे कब तक
82 पर फंसे हुए रुपैए को ना तार पाये
फिर तीसरी इकोनामी पाओगे कब तक
कितने दिनों से देखो ये मणिपुर जल रहा
बेचारे की आग को बुझाओगे कब तक
बेरोजगार जनता रोजगार रोज मांग रही
विश्व गुरु देश का बतलाओगे कब तक
विपक्ष को गाली देकर शेखी तुम बघार रहे
अपने मुंह मियं मिट्ठू बनाओगे कब तक
चंद्रयान की सफलता वैज्ञानिक मेहनत रही
अपनी पीठ खुद ही थपथपाओगे कब तक
ऊपर के सारे शब्द हकीकत देश की है
इसको भी जुमले कहकर ठुकराओगे कब तक
कलमकार राजव्रत

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