एक बेटी की गलती, एक बाप की सजा
**शांतनु** जी, एक साधारण से आदमी, जिनकी जिंदगी अपनी इकलौती बेटी, **रीमा** के इर्द-गिर्द घूमती थी। रीमा, उनकी आंखों का तारा, उनके दिल का टुकड़ा, उनकी जिंदगी का सुकून थी।
लेकिन एक दिन, रीमा घर से भाग गई। किसी अनजान के प्यार में धोखा खाकर, वो अपने घर का सुकून छोड़कर, अंधेरे में कहीं खो गई।
शांतनु जी की दुनिया उजड़ गई। वो जैसे एक पत्थर बन गए, जिसे कोई भी हिला नहीं पाया। ना खाना, ना नींद, ना बातचीत, बस एक खालीपन, जो उन्हें अंदर से खा रहा था।
घर से बाहर निकलना तो मानो दूर की बात हो गई थी। कभी निकलते भी तो सिर झुकाकर, डरते-डरते, मानो हर मुस्कुराता चेहरा उनका मजाक उड़ा रहा हो।
आसपास के लोग कानाफूसी करते, रीमा की बदनामी करते। शांतनु जी का दिल कटा-कटा जाता, वो घुट-घुटकर रोते, पर किसी को कुछ नहीं कह पाते।
उनकी आवाज भी धीमी हो गई थी, डर था कि कहीं कोई रीमा का नाम ना ले ले।
**एक बाप अपनी बेटी के प्यार से नहीं डरता, वो डरता है उसकी गलती से, उसकी भटकन से, उसके लूट जाने से।**
**रीमा की गलती ने शांतनु जी को तोड़ दिया था, पर वो उम्मीद नहीं छोड़ पाए थे।** वो हर रोज रीमा के लौटने की दुआ करते, हर रास्ते पर नजर रखते, शायद वो वापस आ जाए।
**यह कहानी सिर्फ शांतनु जी की नहीं है, यह उन सभी बापों की कहानी है जो अपनी बेटियों के लिए जीते हैं।**
**बेटियों से विनती है, कभी ऐसा गलत कदम ना उठाएं जिससे आपके पिता को ये दर्द झेलना पड़े।**
**घर ही आपका सुरक्षित ठिकाना है, आपके पिता का प्यार ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है।**
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