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24 नवंबर, 1675. दिल्ली का चांदनी चौक ||गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस: धर्म और मानवता की रक्षा में दिया बलिदान

24 नवंबर, 1675. दिल्ली का चांदनी चौक ||गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस: धर्म और मानवता की रक्षा में दिया बलिदान

गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस: धर्म, मानवता और न्याय के लिए बलिदान


दिल्ली का चांदनी चौक का वो रात

24 नवंबर, 1675. दिल्ली का चांदनी चौक। एक शांत रात। लेकिन इस शांति के बीच छिपा था एक बड़ा तूफान। एक ऐसा तूफान जो धर्म और मानवता की जड़ों को हिलाने आया था। 

एक साधु और एक बादशाह

कथा है कि एक साधु, जिनके चेहरे पर गहरा शांति थी, दिल्ली के चांदनी चौक में खड़े थे। उनकी आंखें दूर तक देख रही थीं। वे थे सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी। उनके सामने खड़ा था मुगल बादशाह औरंगजेब, जिसकी आंखों में क्रोध की लालिमा थी। 

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन और बलिदान

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 21 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था। वे सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब के पुत्र थे। गुरु तेग बहादुर जी एक महान संत और दार्शनिक थे। उन्होंने धर्म के सत्य ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया और लोगों को एकता और भाईचारे का संदेश दिया।


उस समय मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा धार्मिक असहिष्णुता फैलाई जा रही थी। उसने हिंदुओं को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को सजा दी जाती थी। गुरु तेग बहादुर जी ने इस अत्याचार को बर्दाश्त नहीं किया और उन्होंने लोगों की रक्षा के लिए आगे आए।


औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली बुलाया और उनसे कहा कि या तो वे इस्लाम धर्म अपना लें या फिर मृत्युदंड स्वीकार कर लें। गुरु जी ने धर्म की रक्षा के लिए मृत्युदंड को स्वीकार कर लिया। 24 नवंबर, 1675 को उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया।

औरंगजेब ने दी एक चुनौती

औरंगजेब ने गुरु जी को एक चुनौती दी। उसने कहा, "या तो तुम इस्लाम धर्म अपना लो, या फिर अपनी जान से हाथ धो बैठो।" यह चुनौती सिर्फ गुरु जी के लिए नहीं थी, बल्कि पूरे सिख धर्म और धर्म की स्वतंत्रता के लिए थी।

मिला एक शांत जवाब

गुरु जी ने शांति से कहा, "मैं अपनी जान देने के लिए तैयार हूं, लेकिन मैं किसी को भी जबरन अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।" 

सर झुका नहीं सर कटा सकते है

औरंगजेब ने गुरु जी की बातों का कोई असर नहीं हुआ। उसने गुरु जी को शहीद करवा दिया। चांदनी चौक में गुरु जी का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।

एक अमर कहानी

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत ने सिख धर्म को एक नई ऊर्जा दी। उन्होंने धर्म की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनकी शहादत हमें आज भी प्रेरित करती है। 

रहस्यमयी पहलू

गुरु जी की शहादत के साथ कई रहस्य भी जुड़े हुए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि गुरु जी की शहादत के बाद उनके शरीर से दूध की धारा निकली थी। कुछ लोग मानते हैं कि उनकी शहादत के बाद भी उनका शरीर अखंड रहा।

शहीदी दिवस का महत्व

गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस हमें धर्म और मानवता के लिए बलिदान देने का संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें हमेशा सत्य और न्याय के लिए लड़ना चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो। गुरु जी के बलिदान ने सिख धर्म को मजबूत बनाया और दुनिया भर में सिखों को एकजुट किया।

शहीदी दिवस कैसे मनाया जाता है


शहीदी दिवस को सिखों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं और गुरु जी के जीवन और बलिदान के बारे में प्रवचन दिए जाते हैं। लोग गुरु जी को श्रद्धांजलि देने के लिए गुरुद्वारों में जाते हैं और गुरु का लंगर ग्रहण करते हैं।

**यह लेख आपको सोचने पर मजबूर करेगा कि धर्म और मानवता के लिए क्या करना चाहिए।**

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